पहला और दूसरा पन्ना
मै वो लिखने की कोशिश तो बिलकुल नहीं करूँगा जो किताब मे लिखा ही है ये तो मै मेरे भावो को लिखता ही जाऊँगा और बीच बीच मे कुछ पंक्तियां किताब से भी नक़ल कर ही लूँगा
इलाहबाद का चित्रण कुछ ऐसा ही है जैसे ये शहर ना हुआ बल्कि एक प्रेमी हों गया जिसकी चच मे स्वछंदता है बहाव है, कोई नियम कायदे नहीं है, प्यार है मतलब है उसका कारण नहीं है. शहर तो शहर, शहर का मौसम भी प्रेमी ही बना हुआ है जिसके पास कोई नियम, कायदा क़ानून नहीं है, जब उसका मन होगा मोहब्बत करने का तो मासूम को खुशगवार बना देगा और जब खिन्नता दिखाने का मन होगा तो सूर्य से आगे बरसाने लगेगा.
धरती भी ऐसी उन्मुक्तता लिए हुए जिसमे एक शहर मे ही सारा देश समाया गया है चाहे वो रेगिस्तान की रेत हों या मालवा के खेत. सब कुछ मिला कर ये शहर देवताओं के रहने का शहर ही साबित होता है
धर्मवीर भारती जी ने ये बतला दिया है कैसे निर्जीव से भी एक सजीव प्यार करने को मजबूर हों सकता है उस निर्जीव से जिसका होना और ना होना एक बराबर ही है.
इस शहर मे शीत की गुलाबी ठण्ड भी है और कवर की तेज गर्मी भी लेकिन उस सब के बाद भी ये शहर सबसे निराला ही है
और ये कहानी है उस युवक की जो इसी शहर की प्यारी सी सुबह मे एक पार्क मे फूलो की खुशबुओं को महसूस करते हुए अपनी आँखों से फूलो की क्यारियों को भी अपना बनाता जा रहा था
"हेलो कपूर!" सहसा किसी ने पीछे से करने पर हाथ रख कर कहा -"यहाँ क्या झक मार रहे हों सुबह -सुबह ? "
उसने मुड़कर पीछे देखा -" आओ, ठाकुर साहब ! औ बैठो यार, लाइब्रेरी खुलने का इन्तेजार कर रहा हूँ ."
"क्यों, युनिवर्सिटी लाइब्रेरी चाट डाली, अब इसे तो शरीफ लोगो के लिए छोड़ दो !"
"हाँ, हाँ, शरीफ लोगो के ही लिए छोड़ रहा हूँ; डॉक्टर शुक्ला की लड़की है न, वह इसकी मेम्बर बनना चाहती थी तो मुझे आना पडा, उसी का इन्तेजार भी कर रहा हूँ. "
"डॉक्टर शुक्ल तो पोलिटिक्स डिपार्टमेंट मे हैं ?"
"नही गवर्नमेंट साइकोलोजिकल ब्यूरो मे हैं."
"और तुम पोलिटिक्स मे रिसर्च कर रहे हों ?"
"नहीं इकोनोमिक्स मे !"
"बहुत अच्छे ! तो उनकी लड़की को सदस्य बनवाने आये हों ?" कुछ अजब स्वर मे ठाकुर न कहा
"छि : ! "
एक बड़ा ही मासूम सा मजाक जो एक सच्चे इंसान को गंदगी ही लगा और मजबूर हों जाना पद उसे खुद शर्मिंदा हों जाने के लिए
इस बार के लिए इतना ही बाकी का अगली किश्त मे
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