Friday 20 May 2011

गुनाहों का देवता

"गुनाहों का देवता"

कहने को तो ये सिर्फ एक किताब ही है लेकिन सिर्फ मै इसे सिर्फ एक किताब नहीं कहूँगा, ये किसी बाजीगर की नायाब बाजीगरी है, किसी सम्मोहन सम्राट का न टूटने वाला सम्मोहन है, ये एक ऐसा मायाजाल है जिसने ना जाने मुझ जैसे कितने ही लोगो को अपने जाल मे उलझाया है.

ये किताब नहीं है ये एक ऐसा युग है जिसे पढ़ा नहीं जा सकता सिर्फ महसूस किया जा सकता है और जिया जा सकता है.

जब मैंने पढ़ना शुरू करा था तो लगा था की बस अभी कुछ दिनों मे ही इस किताब को भी और किताबो की तरह पढ़ कर खत्म कर दूंगा लेकिन कुछ पन्नों तक तो पढता गया और पढता गया उसमे आनंद की जो अनुभूति थी वो भी बढती ही गई और जुडाव भी लेकिन उसके बाद हर पन्ना पलटना ऐसा होता गया जैसे हर पन्ने मे एक समय लिखा और उस समय तो तभी बदल सकता है जब वो खुद आगे बढ़ेगा और फिर पढ़ने मे वक्त लगता गया.

वैसे भी युग को पढ़ा नहीं जा सकता सिर्फ जिया जा सकता है और ये यूग तो ऐसा है जिसमे प्रेम ही प्रेम है और उस प्रेम की पवित्रता.

इस २४५ पन्नों के
यूग को जीने की कोशिश कभी एक मुस्कान तो कभी एक ठहाका दे गई है,
कभी एक उदासी,अक्भी दर्द तो  कभी चंद आंसू दे गई है 


और जो दर्द इस युग मे है उस दर्द को शब्दों मे परिभाषित करना मेरे जैसे व्यक्ति के बस की बात तो नहीं है.

अब जब इस युग को एक बार जी चूका हूँ तो फिर से जिऊंगा हर पन्ने के साथ और कोशिश करूँगा आपको भी उस युग मे शामिल करने की

तो आप आ रहे हैं ना इस युग को मेरे साथ जीने के लिए

2 comments:

  1. स्वागत है , और शुभकामनाएं भी । लिखते रहो बदस्तूर

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  2. हम भी पढना चाहते है।

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